16 या 18साल…कितनी होनी चाहिए सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र? लॉ कमीशन ने की ये सिफारिश

नई दिल्ली
कितनी होनी चाहिए सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र, इसे लेकर विधि आयोग ने सहमति की उम्र 18 वर्ष में कोई बदलाव नहीं करने की सिफारिश की है और 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच के बच्चों की परस्पर मौन स्वीकृति से जुड़े मामलों में सजा सुनाने में निर्देशित न्यायिक विवेक का उपयोग करने का सुझाव दिया है।  

विधि आयोग ने 16 से 18 वर्ष के बीच की आयु के किशोरों के उन मामलों से निपटने के लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम में कुछ संशोधन के प्रस्ताव किए हैं, जिनमें यौन संबंधों के लिए उनकी परस्पर मौन स्वीकृति रही होती है, जबकि कानूनन इसकी अनुमति नहीं है। विधि आयोग ने सरकार को पॉक्सो कानून के तहत सहमति की मौजूदा उम्र में बदलाव नहीं करने की सलाह दी है और 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच के बच्चों की परस्पर मौन स्वीकृति से जुड़े मामलों में सजा सुनाने में निर्देशित न्यायिक विवेक का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
 
भारत में महिलाओं के लिए यह आयु 1860 में 10 साल थी, जिसे समय के साथ क्रमिक रूप से बढ़ाते हुए 2012 तक 16 वर्ष कर दिया गया था। सहमति की उम्र वह आयु है जिसमें किसी व्यक्ति को शादी के लिए या यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने में कानूनन सक्षम माना जाता है। सहमति की उम्र को कानून द्वारा परिभाषित किया जाता है और अभी ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम' के आधार पर यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र 18 साल है।
 
हालांकि, 2012 में पॉक्सो कानून से पहले, पुरुषों के लिए सहमति की अलग से कोई उम्र परिभाषित नहीं थी और यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के आधार पर तय की गई थी, जो ‘बलात्कार' को परिभाषित करती है। महिलाओं के लिए सहमति की उम्र 2012 तक 16 साल थी। बलात्कार को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जो केवल एक महिला के साथ ही किया जा सकता है और यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र भी केवल महिला के लिए परिभाषित की गई थी।

पुरुषों के लिए सहमति की कोई उम्र नहीं
वहीं दूसरी ओर, पुरुषों के लिए सहमति की कोई उम्र नहीं थी। असल में, ‘बच्चा' शब्द को आईपीसी या सामान्य खंड अधिनियम, 1897 के तहत परिभाषित नहीं किया गया था। इसके अलावा, ‘बलात्कार' को परिभाषित करने वाली आईपीसी की धारा 375 के आधार पर महिला के लिए सहमति की उम्र को परिभाषित किया गया है, जिसका एक इतिहास रहा है और 1860 में यह उम्र 10 साल थी, जो वर्तमान में 18 साल है। कानून मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में, विधि आयोग ने पिछले कुछ वर्षों में देश में सहमति की उम्र का संक्षिप्त इतिहास बताया है।

 1860 में महिलाओं के लिए सहमति की उम्र 10 साल थी
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1860 में महिलाओं के लिए सहमति की उम्र 10 साल थी। इसके बाद, 1891 में, फूलमनि मामले के कारण पैदा हुए जनाक्रोश के बाद धारा 375 के तहत महिलाओं के लिए सहमति की उम्र बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गई। फूलमनि 11 वर्षीय बच्ची थी, जिसके साथ उसके पति ने जबरन यौन संबंध बनाया और इस कारण रक्तस्राव होने पर उसकी मृत्यु हो गई थी। उसके पति को केवल लापरवाही से किये गये कृत्य, या जीवन के लिए खतरनाक कृत्य कर गंभीर चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया गया और एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

इसके बाद, सहमति की उम्र 1925 में 14 वर्ष और 1940 में बढ़ाकर 16 वर्ष कर दी गई। 2012 तक, जब पॉक्सो कानून लागू हुआ, तब तक महिलाओं के लिए सहमति की उम्र 16 वर्ष ही थी और पुरुषों के लिए सहमति की कोई उम्र परिभाषित नहीं थी। हालांकि, विवाह की न्यूनतम आयु महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष थी। धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद में भी इस लंबी अवधि के दौरान बदलाव देखने को मिला, जो 1860 के 10 साल से 2012 में 15 साल हो गयी।

विभिन्न देशों में सहमति की उम्र इस प्रकार है: बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। जबकि वैश्विक स्तर पर सहमति की उम्र 13 से 18 वर्ष के बीच है। किशोरों को ऑनलाइन बहकाए जाने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर 2008 में ही कनाडा में सहमति की उम्र 14 से बढ़ाकर 16 वर्ष कर दी गई थी। अमेरिका में, सहमति की उम्र विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है।
 

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