सीएम बनने की जिद पर अड़े शिवकुमार क्यों अचानक नरम पड़े, ये है इनसाइड स्टोरी

नई दिल्ली
कर्नाटक में चुनाव नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी। डीके शिवकुमार को मल्लिकार्जुन खड़गे ने सिद्धारमैया का डिप्टी बनने के लिए राजी किया। इस पूरे प्रकरण में सोनिया गांधी द्वारा शिवकुमार को देर रात की गई फोन कॉल भी उतनी ही निर्णायक साबित हुई। खड़गे ने इससे पहले भी दलित समुदाय से आने वाले पार्टी के पुराने नेता और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपने मजबूत दावे के बावजूद 2013 में सिद्धारमैया को विधायक दल का नेतृत्व सौंप दिया था। सिद्धारमैया 2006 में लेटरल एंट्री के जरिए जेडीएस से कांग्रेस में शामिल हुए थे।

सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार दोनों केसी वेणुगोपाल के आवास पर नाश्ते के लिए पहुंचे। दोनों नेता नेतृत्व फार्मूले से पूरी तरह सहमत नहीं थे। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार शिवकुमार से जब एकमात्र डिप्टी सीएम होने का वादा किया तो वह राजी हुए। सिद्धारमैया दो दिनों की बातचीत के दौरान लगातार सीएम पद के लिए आलाकमान की पसंद बने रहे। वह शिवकुमार के दावे को नजरअंदाज नहीं करना चाहते थे।

सूत्रों ने कहा कि इससे पहले बुधवार को डीके शिवकुमार को राहुल गांधी और खड़गे के साथ बैठक के दौरान बताया गया कि सिद्धारमैया सीएम बनेंगे। राहुल ने यह स्पष्ट कर दिया कि अधिकांश विधायकों के समर्थन से वही मुख्यमंत्री होंगे। साथ ही यह भी कहा पार्टी उनके विचारों का सम्मान करेगी। सूत्रों ने कहा कि राहुल गांधी ने डीके शिवकुमार से कहा कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा लिए गए फैसले का पालन करने और विरोध की किसी भी आवाज को दबाना होगा। यह समय की मांग है। कांग्रेस को ऐसा लगता है कि दलितों, पिछड़े वर्गों और मुसलमानों के बीच सिद्धारमैया की मजबूत अपील 2024 के लोकसभा चुनाव में काम आ सकती है।

शिवकुमार ने मुख्यमंत्री बनने के लिए कड़ा मोलभाव किया, लेकिन कांग्रेस ने इससे इनकार कर दिया। बाद में शिवकुमार भी मजबूर हो गए। शिवकुमार के करीबी सूत्रों ने गुरुवार को जोर देकर कहा कि समझौते में ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला शामिल है। आखिरी बाधा डीके शिवकुमार की यह जिद थी कि वह अकेले सीएम रहेंगे। इससे पहले चर्चा थी कि कांग्रेस लिंगायत, दलित और मुस्लिम समुदाय के एक-दो नेताओं को भी डिप्टी सीएम बनाने पर विचार कर रही है।

डीके शिवकुमार भले ही डिप्टी बनाए जा रहे हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह सीएम बनने के लिए योग्य नहीं हैं। उनके खिलाफ लंबित सीबीआई, ईडी और आईटी के मामले इसमें रुकावट बने। वोक्कालिगा समुदाय का वोट कांग्रेस को दिलाने में उनका अहम योगदान रहा। इसके बावजूद उन्होंने अपने कट्टर विरोधी सिद्धारमैया का साथ देने पर हामी भरी।

वहीं, सिद्धारमैया के अधिकार को कमजोर नहीं करने के लिए बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनाने की औपचारिक रूप से घोषणा नहीं की गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।

 

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