सिर्फ जेनेरिक ही नहीं, नई दवाओं की खोज का भी हब बनेगा भारत; नई फार्मा रिसर्च पॉलिसी सितंबर में हो सकता है लागू

नई दिल्ली
 जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के उत्पादन व निर्यात के कारण दुनिया की फार्मेसी के रूप में स्थान बना चुका भारत जल्द ही नई दवाओं की खोज में भी अग्रणी देशों में शामिल होगा। नई दवाओं और मेडिकल उपकरणों के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पालिसी तैयार है और सितंबर में कभी भी इसे लागू किया जा सकता है।

कई हजार करोड़ रुपये होंगे खर्च
सरकार ने इसके लिए अगले पांच सालों में पांच हजार करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। फार्मा क्षेत्र के लिए नई रिसर्च पॉलिसी में सेंटर ऑफ एक्सेलेंस खोलने, रिसर्च के लिए निजी क्षेत्र को वित्तीय सहायता देने और विभिन्न संस्थाओं में चल रहे
रिसर्च के बीच समन्वय बनाने पर जोर है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नई पॉलिसी के तहत 100-100 करोड़ रुपये की लागत से सात नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फॉर्मासिट्यूकल्स एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआइपीईआर) को सेंटर ऑफ एक्सेलेंस तैयार किये जाएंगे, जो अलग-अलग क्षेत्र में विशेषज्ञता से जुड़े होंगे।

कई जगहों पर होगा रिसर्च
इनमें उत्तरप्रदेश के रायबरेली स्थित एनआइपीईआर में नोवल ड्रग डिलेवरी सिस्टम और हाजीपुर स्थित एनआइपीईआर में बायोलाजिकल थेरेप्यूटिक्स के क्षेत्र में रिसर्च होगा। निजी कंपनियों में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए छह प्राथमिकता वाले क्षेत्र में रिसर्च की लागत का 35 फीसद तक सहायता देने का प्रविधान है, जो 125 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होगा।

स्टार्टअप के लिए भी वित्तीय सहायता
इसके अलावा रिसर्च में एक स्तर तक पहुंच चुकी उच्च क्षमता वाले उत्पादों और तकनीक को बाजार तक पहुंचाने के लिए भी वित्तीय सहायता का प्रविधान किया गया है। इसके तहत 35 रिसर्च प्रोजक्ट्स को पांच साल के लिए 35 फीसद (अधिकतम 100 करोड़ रुपये ) की सहायता दी जाएगी। पॉलिसी में एमएसएमई और स्टार्टअप के लिए भी वित्तीय सहायता का प्रविधान है।

इसके लिए कॉमर्शियल क्षमता वाले 125 रिसर्च प्रोजक्ट्स को चुना जाएगा और उन्हें एक-एक करोड़ रुपये की सहायता दी जाएगी। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दुनिया के 25 फीसद दवाओं और 60 फीसद वैक्सीन निर्यात के साथ भारत काफी आगे हैं, लेकिन नई दवाओं की खोज के मामले में स्थिति बिल्कुल उल्टी है। उन्होंने कहा कि नई नीति का उद्देश्य सिर्फ दवाओं का उत्पादन नहीं, बल्कि उनकी डिस्कवरी का केंद्र भी भारत को बनाना है।

नई पॉलिसी में कई बीमारियों के लिए खोजी जाएगी दवाई
उनके अनुसार हम जितनी कीमत की जेनरेक दवाई का निर्यात एक कंटेनर में करते हैं, उनकी कीमत की रेयर डिजीज की दवाई हमें एक लिफाफे में आयात करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि कालाजार, सिकल सेल एनिमिया, मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी बीमारियां भारत में बहुत पाई जाती हैं, लेकिन विदेश में इनके कम पाए जाने के कारण वहां इसकी दवाओं और वैक्सीन पर अनुसंधान नहीं होता है। नई पॉलिसी में इन बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं और वैक्सीन की खोज पर भी जोर दिया गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button