संविधान निर्माण के साथ अलंकरण में भी मध्यप्रदेश के मनीषियों ने दिया अविस्मरणीय योगदान
मध्यप्रदेश के चित्रकार के हुनर से सजा है संविधान
भोपाल
भारतीय संविधान के निर्माण में मध्यप्रदेश के मनीषियों ने भी अपना अमूल्य और अविस्मरणीय योगदान दिया है। लगभग तीन वर्ष में लिखे गए संविधान को संविधान सभा के 299 सदस्यों ने तैयार किया, इनमें मध्यप्रदेश के भी 19 मनीषी शामिल हैं। संविधान की निर्मात्री समिति के प्रमुख बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्मस्थल भी मध्यप्रदेश में इंदौर जिले का महू कस्बा है। इनके साथ ही सर डॉ. हरिसिंह गौर संविधान सभा के सदस्य तो थे ही, उन्होंने निर्माण से पूर्व ही सर्वप्रथम संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया था। उन्होंने संविधान को संवारने के साथ इसमें सम्मिलित करने के लिए हिंदू लॉ की व्याख्या भी की थी।
अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने संविधान सभा के सदस्य के रूप में हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का सुझाव दिया था। संविधान सभा में इसके लिए सशक्त तर्क प्रस्तुत किए थे। उनकी पहल पर अंततः अनुच्छेद-343 में देश की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी को माने जाने का प्रावधान किया गया। मध्यप्रदेश के श्रमिक नेता श्री रतनलाल मालवीय ने भी संविधान सभा में शामिल होकर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संविधान के बारे में नागरिकों को जागरूक करने और संविधान के महत्व के प्रसारण के उद्देश्य से देश भर में प्रति वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1949 में भारत का संविधान अपनाया गया था। संविधान तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन लगे लगे। भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 को बनकर तैयार हो गया था। इसे आधिकारिक रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। पहली बार संविधान दिवस डॉ. गौर की जयंती 26 नवंबर 2015 को मनाया गया। तब से प्रति वर्ष यह दिन संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
संविधान के अलंकरण में मध्यप्रदेश के जबलपुर में जन्में कलाविद एवं चित्रकार श्री राममनोहर सिंह ब्योहार ने अपने हुनर का योगदान दिया, उनके इस योगदान के स्मरण के बिना संविधान की चर्चा अधूरी ही रहेगी। उनके ही चित्रों से संविधान के प्रस्तावना पृष्ठ को अलंकृत किया गया है। साथ ही उनके द्वारा बनाए गए लगभग 10 चित्रों को संविधान में अलग-अलग पृष्ठों पर स्थान दिया गया है। इन चित्रों के माध्यम से देश की गौरवगाथा प्रस्तुत की गई है। उनके पहले चित्र में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतीक वृषभ को शामिल किया गया। इसके बाद उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता के गुजरात स्थित लोथल बंदरगाह के साथ सुमेरियन सभ्यता के बंदरगाह बेबीलोन को जोड़ते हुए चित्र बनाए। इसके साथ ही फारस में मिले स्वास्तिक को भी उनके परामर्श पर संविधान में दर्शाया गया, ताकि यह बताया जा सके कि फारस तक भारत की सभ्यता विस्तृत थी। शैव संप्रदाय के नटराज, उड़ीसा के कलिंग साम्राज्य का कोणार्क सूर्य मंदिर, नालंदा विश्वविद्यालय की मुहर, देश के इतिहास में स्वर्णिम युग कहे जाने वाले गुप्तकाल की मुद्राओं के साथ ही भारत की प्राकृतिक संपदा की विविधता को दर्शाते श्री राममनोहर सिंह जी के लैंडस्केप चित्रों से संविधान के अलग-अलग पृष्ठों को सजाया गया था। श्री राममनोहर सिंह ब्योहार ने अपने इस योगदान के बदले में किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक लेना स्वीकार नहीं किया था। बल्कि, जब उनसे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और पं. जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्तावना पृष्ठ के अलंकरण के बाद हस्ताक्षर करने का आग्रह किया तो उन्होंने एक स्थान पर प्रतीक स्वरूप सिर्फ "राम" लिख दिया था।
भारतीय संविधान के 75 वर्ष देश की प्रगति, एकता और न्याय का प्रतीक है। संविधान न केवल अधिकारों के प्रति, बल्कि कर्त्तव्यों के प्रति भी जागरूक बनाता है। इसी के दृष्टिगत रखते हुए इस वर्ष मध्यप्रदेश सरकार "हमारा संविधान-हमारा स्वाभिमान" अभियान चलाकर आमजन में जागरूकता लाने की अहम पहल कर रहा है। संविधान दिवस पर भोपाल में "संविधान दिवस पद यात्रा" निकाली जाएगी। साथ ही रवीन्द्र भवन भोपाल में राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल की उपस्थिति में संविधान दिवस का राज्य स्तरीय कार्यक्रम होगा।