BJP की कमलनाथ को उनके ही गढ़ में घेरने की तैयारी

भोपाल

विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज होते ही भाजपा सत्ता बनाए रखने के प्लान में जुट गई है। कॉडर बेस पार्टी भाजपा के सामने कॉडरलैस पार्टी कांग्रेस सिर्फ कमलनाथ का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। कांग्रेस के इसी गेम प्लान के विरुद्ध भाजपा प्रचार के लिए राष्ट्रीय नेताओं को उतार कर कमलनाथ को उनके ही गढ़ छिंदवाड़ा में ट्रैप करने का प्लान बना रही है।

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को उनके ही गढ़ में घेरने की तैयारी कर रही है। नाथ को इससे पहले भाजपा लोकसभा चुनाव में भी कई बार घेर चुकी है, जिसमें से एक बार उसे सफलता भी मिली थी। इस बार भाजपा की रणनीति कमलनाथ को उनके विधानसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा में ही घेरने की बन रही है, ताकि वे दूसरी सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा वक्त नहीं दे सकें।  उनके खिलाफ पार्टी मध्य प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार किसी बड़े नाम और चेहरे को विधानसभा का चुनाव लड़वा सकती है।

संगठन और लीडरशिप का मुकाबला
भाजपा को विधानसभा चुनाव में संगठन की ताकत हमेशा से मिलती रही है। वहीं कांग्रेस का हाल इसके उल्टा हैं, कांग्रेस में लीडरशिप ही भाजपा के संगठन से मुकाबला करते हुए चुनाव लड़ती है। हालांकि इस बार कांग्रेस ने अपने संगठन को मजबूत किया है। इसके बाद भी भाजपा यह मानती है कि यदि कमलनाथ को उनके ही चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा में ही घेर दिया जाए तो उनका  वन मैन शो प्रभावित होगा, जिसका सीधा फायदा भाजपा को प्रदेश की अन्य सीटों पर मिल सकता है।

पटवा को भी घेर चुकी कांग्रेस
इधर विधानसभा चुनाव में बड़े नेताओं को घेरने की परम्परा कांग्रेस ने शुरू की थी। कांग्रेस ने भोजपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के कद्दावर नेता सुंदललाल पटवा के खिलाफ अजय सिंह राहुल को उतारा था। उस वक्त अजय सिंह के पिता अर्जुन सिंह केंद्र में ताकतवर नेता हुआ करते थे, अर्जुन सिंह का पूरे प्रदेश में अपना नेटवर्क था। इसके बाद पटवा को लोकसभा चुनाव में भी घेरा गया। वर्ष 1999 में हुए लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस की ओर से राजकुमार पटेल बड़ा चेहरा हो चुके थे, पार्टी ने होशंगाबाद लोकसभा सीट से पटवा के खिलफ राजकुमार पटेल को चुनाव में उतारा था। पिछले चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को भी घेरने का प्रयास कांग्रेस ने किया था। उनके खिलाफ अरुण यादव को चुनाव में उतारा गया था।

इसलिए भी घेरने की बनी रणनीति
कांग्रेस में कमलनाथ ही एक मात्र नेता हैं जो पब्लिक से लेकर संगठन तक में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं। जनता उनकी ही सभाओं में ज्यादा आ रही है। जबकि दिग्विजय सिंह अब सभाएं कम करने लगे हैं। बाकी के नेता अपनी सभाओं से जनता को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाते हैं। ऐसे में यदि नाथ खुद अपने विधानसभा क्षेत्र में घिर जाएंगे तो उनकी सभाओं की संख्या में चुनाव में कम हो सकती है।

पटवा-प्रहलाद ने भी घेरा था
कमलनाथ को भी लोकसभा चुनाव में घेरा जा चुका है। 1997 में छिंदवाड़ा लोकसभा में हुए उपचुनाव में कमलनाथ के खिलाफ भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को उतारा था। भाजपा की यह रणनीति सफल रही थी और कमलनाथ लगभग 38 हजार मतों से चुनाव हार गए थे। इसी तरह इसके बाद 1998 में भी नाथ के खिलाफ भाजपा ने पटवा को चुनाव में उतारा था। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से कमलनाथ को भाजपा ने घेरने का प्रयास किया, तब हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के खिलाफ प्रहलाद पटेल को उतारा था। प्रहलाद पटेल अभी केंद्र में मंत्री है।  वहीं वर्ष 2003 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राघौगढ़ में भाजपा ने घेरा था। उस वक्त यहां से शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने उतारा था।

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