जबलपुर विकास प्राधिकरण के सीईओ पर मेहरबान विभाग, अब तक कोई एक्शन नहीं : जबलपुर विकास प्राधिकरण का घोटाला

जबलपुर
जबलपुर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ द्वारा अपराध पंजीकृत किए जाने के बाद से शहर में एक नई बहस छिड़ गई है। यह मामला न केवल भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को उजागर करता है, बल्कि शहर के विकास कार्यों पर भी सवाल खड़े करता है। करप्शन सामने आने के बाद भी अब तक भ्रष्टाचारी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उधर, पीङित किसान परेशान हैं। न्याय के लिए भटक रहे हैं।

जिम्मेदारों ने साध रखी चुप्पी
सरकार की ओर से अभी तक इस मामले में कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। यह चुप्पी लोगों में और अधिक संदेह पैदा कर रही है। क्या सरकार इस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है? यह एक गंभीर सवाल है जिसका जवाब सरकार को कारॅवाई कर देना होगा।  

यह था मामला…
जेडीए की जमीन में फर्जीवाड़ा कर सरकार को 2 करोड़ 40 लाख चपत लगाने एवं 25 लाख की स्टाम्प ड्यूटी की हानि पहुँचाने के मामले में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने जेडीए के सीईओ दीपक वैद्य सहित अन्य के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। इस मामले में गढ़ा मानस स्कूल के पास रहने वाली विद्याबाई प्यासी और उनके बेटे हरीश प्यासी, सौरभ प्यासी, प्रवीण प्यासी और आशीष प्यासी को भी आरोपी बनाया गया है। ज्ञात हो कि पूर्व में संजीवनी नगर थाने में विद्याबाई और उसके बेटों के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज किया जा चुका है। जानकारी के अनुसार ईओडब्ल्यू को गढ़ा निवासी अशोक प्यासी द्वारा दी गई शिकायत में बताया गया था कि कछपुरा में योजना क्रमांक 6 और 41 की कुछ जमीन को जेडीए द्वारा अधिग्रहित किया गया था। इसके एवज में जेडीए ने भू-स्वामियों को दो करोड़ 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया। जेडीए इस जमीन के दस्तावेजों में अपना नाम नहीं चढ़वा पाई। इस दौरान विद्या बाई और उनके बेटों ने जेडीए अधिकारियों के साथ साँठगाँठ कर अधिग्रहित की गई जमीन के फर्जी दस्तावेज बनाए और जमीन को बेच दिया। इसमें 25 लाख रुपए के स्टाम्प की भी हानि शासन को पहुँचाई।

गलत जानकारी प्रस्तुत की थी
जाँच के दौरान ईओडब्ल्यू ने सीईओ दीपक वैद्य से जानकारी माँगी, तो उनके द्वारा ईओडब्ल्यू को गलत जानकारियाँ दी गईं। इस पूरे मामले में तत्कालीन जेडीए सीईओ समेत भू-अर्जन अधिकारी और राजस्व अधिकारी की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। इनकी भी जाँच की जा रही है। जाँच में जिन अधिकारियों की मिलीभगत होगी उन्हें भी आरोपी बनाया जा सकता है।

यह सवाल लोगों के जेहन में उठ रहे
 * क्या इस मामले में राजनीतिक दखल है?
 * क्या विभाग इस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है?
 * क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की नीतियां कागजों पर ही सिमट कर रह गई हैं?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button