जाने क्यों बना I.N.D.I.A? ये है असल मकसद, क्योकि विपक्ष का मिलकर चुनाव लड़ना तो असंभव

नईदिल्ली

भारतीय राजनीति को लेकर जिन बातों की भविष्यवाणी की जा सकती है, उनमें एक यह है कि जब चुनाव दूर होते हैं तो जो विमर्श होता है, वो चुनाव नजदीक आते ही पूरी तरह बदल जाता है। विभिन्न चुनावों के बीच के वर्षों में व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या सिंहासन के पीछे की शक्ति के रूप में देखा जाने वाला कोई व्यक्ति। लेकिन चुनावों के बीच के वर्षों में राष्ट्रीय राजनीति प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द चाहे कितनी भी घूमती रहे, चुनाव नजदीक आते ही गठबंधन फोकस में आ जाते हैं। आज के भारत में कोई भी दल अपने दम पर राष्ट्रीय चुनाव नहीं जीत सकता है। चुनावों के बीच के वर्षों में इस सच्चाई को भले ही नजरअंदाज कर दिया जाए, लेकिन चुनाव के वक्त ऐसा करना आत्मघाती ही साबित होगा। 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और तब तक की अवधि भी इसका अपवाद नहीं है। केवल खंडित विपक्ष ही गठबंधन के लिए एड़ी-चोटी का जोर नहीं लगा रहा, बल्कि सर्वशक्तिमान से दिखने वाली भाजपा भी एनडीए के विस्तार में जुटी है।

विपक्ष में साथियों को इकट्ठा करने का अभियान

जैसे-जैसे दोनों गठबंधन आकार लेते हैं, दोनों के नजरिए में खासा अंतर स्पष्ट होने लगता है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के सभी संकेत मुख्य रूप से सीट की संभावना से प्रेरित हैं। भाजपा पुराने सहयोगियों को लुभाने में जुटी है, जिन्होंने पहले के चुनावों में उसे ज्यादा सीटें जीतने में मदद की थी, लेकिन चुनावों के बीच की अवधि में उन्हें खारिज कर दिया गया था। एनडीए नए सहयोगियों पर डोरे डालते वक्त अन्य किन्हीं बातों से ज्यादा सीटों की साझेदारी को महत्व दे रहा है। जेडीएस ने अपने नाम में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को शामिल करके खुद को भाजपा विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित किया था, लेकिन दक्षिणी कर्नाटक की राजनीति की वास्तविकता इसे एनडीए के दरवाजे तक ले आई है। ध्यान रहे कि दक्षिणी राज्य कर्नाटक में त्रिकोणीय मुकाबला होने पर केवल कांग्रेस को ही मदद मिलेगी।

विपक्ष गठबंधन में सीट साझेदारी का बड़ा सवाल

इसके विपरीत, विपक्षी गठबंधन सीटों की साझेदारी का रास्ता निकालने को लेकर कम-से-कम अभी तो गंभीर नहीं दिख रहा है। नवगठित गठबंधन इंडिया में ऐसे दल शामिल हैं जिनके बीच आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक-दूसरे के साथ सीटें साझा की जाने की संभावना नहीं है। कई बार व्यक्ति आधारित दलों में नाक की लड़ाई हो जाती है। मसलन, कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था बन पाने की उम्मीद ख्याली पुलाव जैसा ही है। इसी तरह, कई बार मतभेद व्यक्तित्व से परे बुनियादी राजनीतिक विचारों के कारण होते हैं। अगर मार्क्सवादी और कांग्रेस 2024 के चुनाव के लिए एक साथ आते हैं, तो यह केरल में सीपीएम के खिलाफ सत्ताविरोधी वोट को भाजपा में जाने का रास्ता खोल सकता है। उधर, दिल्ली और पंजाब में आप और कांग्रेस के लिए भी इसी तरह के तर्क दिए जा सकते हैं। अगर टीएमसी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम को सीटें देती है तो वहां भाजपा की खुशी का ठिकाना नहीं होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि ममता विरोधी वोट एकमुश्त भाजपा को चले जाएं।

विपक्ष को है बीजेपी की ताकत का अहसास

एक मंच पर आए कई दलों के बीच सीटों की साझेदारी की संभावना नहीं होने के बावजूद अगर गठबंधन का ऐलान किया गया है तो इससे पता चलता है कि विपक्ष को बीजेपी की ताकत का अच्छे से अंदाजा है। इस कारण बीजेपी के नैरेटिव के खिलाफ वह येन-केन-प्रकारेण एकजुट होना चाहता है। दरअसल, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से भाजपा हिंदुओं के लिए एकमात्र विचारधारा के रूप में हिंदुत्व को पेश करने में सक्षम और सफल रही है।

पूरे विपक्ष ने बीजेपी के लिए खुला छोड़ दिया हिंदुत्व का मैदान

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने बाबरी विध्वंस को रोकने की शायद ही कोई कोशिश की थी। कांग्रेस सत्ता में रहे हुए हिंदुत्व के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। इससे भाजपा को हिंदुत्व को राष्ट्रवाद का एकमात्र आधार बनाने में मदद मिली। राष्ट्रवाद के पिच पर बीजेपी के सामने समर्पण कर देना कांग्रेस के लिए बहुत घातक साबित हुआ। चूंकि क्षेत्रीय दलों के पास भी अपने-अपने नैरेटिव्स थे, इसलिए उन्होंने भी राष्ट्रवाद को अपने विमर्श का हिस्सा नहीं अपनाया।

हिंदुत्व राष्ट्रवाद का मुकाबला करने में मुख्य बाधा इस डर का होना है कि इस दीवार को गिराया नहीं जा सकता है। इस दीवार को भी दरकाया जा सकता है, इसका पहला संकेत भारत जोड़ो यात्रा को मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया में देखा गया। हिंदुत्व की अभेद्य दीवार में पड़ी पहली दरार को कर्नाटक चुनाव में जीत से थोड़ा और चौड़ा कर दिया गया। वहां खासकर सिद्धारमैया ने हिंदुत्व को हिंदू धर्म का एकमात्र आधार बताने के खिलाफ जमकर प्रचार किया। कई दलों ने राष्ट्रवाद के मोर्चे पर भाजपा को फ्री पास देने के नुकसान को समझा। इस कारण अब राष्ट्रवाद के वैकल्पिक विमर्श की पुरजोर चर्चा हो रही है।

गैर-हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का नैरेटिव तैयार करने की कोशिश

बेंगलुरु की बैठक में आए विचारों से स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष एक गैर-हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादी विमर्श पैदा करना चाहता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि विपक्षी दलों को एकसाथ करने की कवायद का उद्देश्य कांग्रेस के हिस्से में प्रधानमंत्री पद लाना नहीं है। उन्होंने कहा कि इसे चुनावी गुणा-गणित के बजाय देश में एक वैकल्पिक विमर्श तैयार करने की चाहत के रूप में देखा जाना चाहिए। नए विमर्श में राष्ट्रवाद पर जोर की झलक गठबंधन को दिए गए नए नाम इंडिया (I.N.D.I.A) यानी भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन में ही दिख रही है।

क्या I.N.D.I.A नाम को भुना पाएगा विपक्षी गठबंधन?

इस नए गठबंधन के सामने चुनौती यह होगी कि अपना नाम इंडिया रखने के पीछे का चुनावी लक्ष्य हासिल किया जा सके। यह लक्ष्य इसलिए दुरूह दिख रहा है क्योंकि गठबंधन में शामिल सभी दल समान भाव से हिंदुत्व के खिलाफ मोर्चा लेने को उत्सुक नहीं होंगे। मसलन, लालू प्रसाद यादव हिंदुत्व के खिलाफ दहाड़कर काफी खुश हो सकते हैं, लेकिन दूसरे कई दलों के नेता हिंदुत्व के खिलाफ उस तरह खुलकर बोलने में सहज नहीं होंगे। ऐसे में जनकल्याण के मुद्दों पर ही विपक्षी दलों के बीच सहमति की गुंजाइश ज्यादा बन पाएगी। इसलिए गठबंधन खुद को देश के सामने अपने नाम में शामिल 'समावेशी' शब्द को ही अपनी पहचान की आधारशिला बनाकर पेश करे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

तो विपक्ष की ताकत बढ़ाना नहीं, यह है इंडिया का असल मकसद?

गठबंधन के वक्त असली चुनौती होगी कि उसके दिए नए विमर्श को मिलने वाले समर्थन को वह अपने लिए चुनावी फायदे में तब्दील कर ले। तब कुछ घटक दलों के बीच सीट बंटवारे का झंझट दूर कर पाने में उसकी अक्षमता पर पर्दा डाला नहीं जा सकेगा। अगर गठबंधन के कुछ दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं, तो उनके बीच नए विमर्श को मिल रहे समर्थन पर दावेदारी की प्रतिस्पर्धा चल पड़ेगी। ऐसा लगता है कि इंडिया का उद्देश्य एक एकजुट चुनावी गठबंधन बनाने के बजाय 2024 के चुनावों का एजेंडा बदलना है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button