NDA में 3 OBC चेहरों की घरवापसी, बीजेपी का 2024 में क्या है प्लान!
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव 2024 की लड़ाई में बीजेपी ने कांग्रेस की अगुवाई वाले 26 दलों के गठबंधन (INDIA) के मुकाबले 38 दलों का बड़ा गठबंधन (NDA) पेश कर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली है। अब वह चुनावी मैदान में लीड लेने की जुगत में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा है कि 2024 में एनडीए को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने के आसार हैं। मोदी की यह भविष्यवाणी या उम्मीद यूं ही नहीं सामने आई है। दरअसल, बीजेपी ने अपने मतभेदों को भुलाते हुए पुराने बिछड़े साथियों को फिर से अपने पाले में लाना शुरू कर दिया है।
कुछ हद तक इस मुहिम में बीजेपी को सफलता भी मिल चुकी है, जबकि कुछ दलों को साथ लाने की कोशिशें अभी भी जारी हैं। बीजेपी ने सबसे ज्यादा फोकस ओबीसी और दलित समाज की अगुवाई करने वाले क्षेत्रीय नेताओं पर किया है। इसी कड़ी में बीजेपी ने पूर्वांचल (पूर्वी यूपी और बिहार) के तीन बड़े ओबीसी नेताओं को अपने पाले में किया है। यूपी से ओमप्रकाश राजभर और दारासिंह चौहान हैं तो बिहार में कोईरी समाज के नेता उपेंद्र कुशवाहा हैं। तीनों नेताओं की यह घरवापसी है। इन नेताओं के बीजेपी से हाथ मिलाने से चुनावी समीकरण बदल सकता है।
ओम प्रकाश राजभर
ओपी राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं। वह अति पिछड़ी जाति राजभर समुदाय से आते हैं। उत्तर प्रदेश में इस समुदाय का करीब चार फीसदी वोट है। इतना ही नहीं पूर्वांचल के 25 में से 18 जिलों में राजभर मतदाताओं की अच्छी आबादी है। गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, आजमगढ़, सलेमपुर और मऊ समेत करीब एक दर्जन विधानसभा सीटों पर राजभर मतदाता हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
ओमप्रकाश राजभर जब बीजेपी का साथ छोड़कर सपा के साथ चले गए थे, तब बीजेपी ने अनिल राजभर को समुदाय का वोट साधने के लिए काम पर लगाया था लेकिन उन्हें वांछित सफलता नहीं मिल सकी। दरअसल, राजभर अभी भी अपने जातीय वोटरों को लामबंद रखने की हैसियत रखते हैं और उनके इशारे पर उनकी जाति वोट करती है। इसी बात को समझते हुए बीजेपी ने उन्हें फिर से साथ लाया है। जब ओमप्रकाश राजभर ने सपा की साइकिल से उतरने का ऐलान किया, तभी अमित शाह ने उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे, जो अब जाकर साकार हुई है।
दारा सिंह चौहान
दारा सिंह चौहान भी ओबीसी नेता हैं। वह नोनिया समाज से आते हैं, जिससे बिहार के पूर्व गवर्नर फागू चौहान का भी वास्ता रहा है। दारा सिंह ने हाल ही में सपा छोड़कर बीजेपी में घरवापसी की है। चौहान ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी कैबिनेट से इस्तीफा देकर सपा का हाथ थाम लिया था। वह घोसी सीट से सपा के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे लेकिन एक बार फिर से उन्होंने पाला बदल लिया है।
राजभर की तरह चौहान की भी घरवापसी जातीय वोटों के जुगाड़ के लिए हुई है। पूर्वांचल के बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, सलेमपुर, घोसी जैसी कई सीटों पर नोनिया समुदाय का बड़ा वर्चस्व रहा है। मऊ के साथ-साथ बलिया और आजमगढ़ के नोनिया मतदाताओं पर भी दारा सिंह चौहान का अच्छा प्रभाव है। वह जिस तरफ जाते हैं, नोनिया जाति के मतदाता उसी खेमे में चले जाते हैं। पूर्वांचल में नोनिया समाज की करीब 8-9 करोड़ आबादी है।
उपेंद्र कुशवाहा
बीजेपी ने बिहार के ओबीसी नेता और कोईरी समाज से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा को फिर से अपने पाले में कर लिया है। 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले और केंद्र में मंत्री बनने वाले कुशवाहा ने 2019 से पहले एनडीए से नाता तोड़ लिया था। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय नीतीश कुमार की पार्टी में कर दिया था। अब एक बार फिर उन्होंने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में घरवापसी की है। बिहार में कुशवाहा समुदाय की आबादी करीब 5 से 6 फीसदी के करीब मानी जाती है।
बिहार में नीतीश-लालू, कांग्रेस और वाम दलों का महागठबंधन बनने के बाद बीजेपी की स्थिति कमजोर हुई है। ऐसे में पार्टी ने छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों को वहां भी अपने पाले में करने की कोशिशों को तेज कर दिया है। इसी मुहिम में एनडीए में चिराग पासवान की लोजपा, जीतनराम मांझी की हम को भी जगह दी गई है। ये सभी दल पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। इन तीनों नेताओं के जरिए बीजेपी करीब 12 फीसदी वोट को साधने की कोशिशों में हैं।
यूपी में बीजेपी की क्या मजबूरी?
2022 के विधान सभा चुनावों में बीजेपी गाजीपुर जिले में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी, जबकि बलिया में सिर्फ एक सीट पर सिमट कर रह गई थी। आजमगढ़ में भी पार्टी का प्रदर्शन 2017 के मुकाबले काफी निराशाजनक रहा, जबकि राजभर की पार्टी ने पूर्वांचल की छह सीटें जीत लीं। इन इलाकों में नोनिया और राजभर दोनों जातियों की अच्छी पकड़ है।
बता दें कि 2024 की लड़ाई में बीजेपी का फोकस यूपी की 80 में से 80 लोकसभा सीटों को जीतने पर है। इस लिहाज से बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को अपने पाले में किया है। निषाद पार्टी, अपना दल पहले से ही बीजेपी की सहयोगी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर (मनोज सिन्हा) और घोसी सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि मछलीशहर और बलिया सीट पर बड़ी मुश्किल से जीत हो सकी थी। पार्टी की कोशिश है कि राजभर और चौहान के जरिए इन सभी सीटों पर सम्मानजनक तरीके से कब्जा किया जाय और पूरे राज्य में भगवा लहर पैदा की जाय।