कृषि अनुसंधानों को किसानों तक पहुंचाने में हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका: डॉ. संजय अलंग

रायपुर

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में हिंदी पखवाड़ा के समापन के अवसर पर कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार गतिविधियों में हिंदी की भूमिका विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा आयोजित नारा, कविता, निबंध लेखन और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के पुरस्कारों का वितरण भी किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रायपुर संभाग आयुक्त डॉ. संजय अलंग थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के प्रबंध मंडल के सदस्य श्री आनंद मिश्रा और श्रीमती वल्लरी चंद्राकर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. संजय अलंग ने कहा कि कविता, कहानी, निबंध आदि के लेखन से भाषा का प्रसार नहीं होता, बल्कि व्यवहार में लाने से होता है। आज हम डिजिटल युग में संप्रेषण कर रहे हैं। हमारा संप्रेषण आसान हो गया है, लेकिन हमारी हिंदी कमजोर हो गई है और शब्दावली में कमी आ गई है। अच्छे संप्रेषण के लिए भाषा का चयन जरूरी है। कृषि विश्वविद्यालय और यहां के वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे नवीन कृषि अनुसंधानों को किसानों और हितग्राहियों तक संप्रेषित करने के लिए उनकी स्थानीय भाषा का प्रयोग लाना चाहिए। जिससे किसान और हितग्राही आसानी से समझ सकें और अपने उपयोग में शामिल कर सकें। उन्होंने कहा कि यदि हमें अनुसंधान उपलब्धियों से किसानों को जोड?ा है तो यह आवश्यक है कि अपनी बातों को उनकी भाषा और बोली में उन तक पहुंचायी जाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि भारत में हिन्दी भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह देश की बहुसंख्यक आबादी द्वारा बोली एवं समझी जाने वाली प्रमुख भाषा है। इसलिए यह आवश्यक है कि कृषि शिक्षा, कृषि अनुसंधान एवं प्रसार गतिविधियों में हिन्दी भाषा को बढ़ावा दिया जाए। कृषि के विभिन्न पाठ्यक्रमों हेतु हिन्दी भाषा में बड़ी संख्या में पुस्तकें लिखी जा रही हैं लेकिन और अधिक गुणवत्तायुक्त, स्तरीय पुस्तकें लिखे जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अनेक सर्वेक्षणों में भी यह साबित हुआ है कि विद्यार्थियों को अगर उनकी मातृ भाषा में शिक्षा दी जाए तो वे इसे शीघ्रता से ग्रहण कर लेते हैं। विदेशी भाषा में शिक्षा प्राप्त करना उनके लिए अपेक्षाकृत कठिन कार्य होता है। इसी प्रकार विभिन्न सामाजिक सर्वेक्षणों में भी यह पाया गया है कि ग्रामीण जनता विशेषकर किसानों को अनुसंधान एवं प्रसार गतिविधियों के बारे में उनकी मातृ भाषा या स्थानीय बोली में जानकारी दी जाए तो वे इन्हें जल्दी समझ पाते हैं।

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