वैदिक साहित्य के बिना भारत की कल्पना भी असंभव : डाँ. महेश

दुर्ग

राष्ट्रीय कवि संगम की दुर्ग जिला इकाई की ओर से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। मीनाक्षी नगर दुर्ग के श्री केसरी नंदन हनुमान मंदिर में उक्त गोष्ठी में साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञ और शिक्षाविद आचार्य डॉ महेश चन्द्र शर्मा मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की पूजा अर्चना एवं समिति की सदस्य डाँ. श्रीमती बीना सिंह रागी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई।

इस दौरान देश के स्वर्णिम इतिहास और स्वर्णिम भविष्य, अखण्ड भारत में सिखों के योगदान, जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता पर पैंतीस से अधिक कवियों ने श्रेष्ठतम कविताएं प्रस्तुत कीं। इस दौरान आचार्य डॉ.महेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में भारतवर्ष जगद्गुरु रहा है।वैदिक साहित्य के बिना हिन्दुस्तान की कल्पना असंभव है।

आचार्य डॉ. शर्मा ने समिति के अध्यक्ष एवं कवि नरेन्द्र देवांगन" देव" को अपनी दसवीं पुस्तक गागर में सागर भी भेंट की। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार प्रदीप वर्मा ने समान नागरिक संहिता पर अपनी बात कहते हुए कहा कि संविधान अनुच्छेदों से भरा पड़ा है जिसमें पुनर्विचार की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि किशोर तिवारी प्रांतीय सलाहकार राष्ट्रीय कवि संगम छ.ग. ने कहा कि राष्ट्रीय कवि संगम, राष्ट्रीय भाव बोध की कविता का मंच है,जो कि लक्ष्य प्रेरित है। संचालन करते हुए समिति अध्यक्ष नरेन्द्र देवाँगन " देव" ने बताया कि 28,29 अक्टूबर 2023 को अयोध्या में राष्ट्रीय स्तर का महाकवि सम्मेलन होना है जिसमें प्रत्येक जिले से चयनित होकर एक कवि प्रांत में जायेंगे और प्रांत से चयनित होकर राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने का अवसर प्राप्त होगा।यह काव्य गोष्ठी इसी कड़ी का प्रारंभिक चरण है।

गोष्ठी में लगभग 35 कवियों ने काव्य पाठ किया। जिसमें किशोर तिवारी, नरेन्द्र देवांगन, अनूप दुबे, दिनेश गुप्ता, श्रीमती नीलम जायसवाल,रामदेव शर्मा, गिरीश द्विवेदी, ओमवीर करण, माला सिंह,शारदा प्रसाद पांडेय, घनश्याम सोनी,नौशाद सिद्दीकी, आशा झा,अशोक ठाकुर, डाँ. बीनासिंह रागी, मंजूलता शुक्ला, टी.आर.कोसरिया अलकरहा, शत्रुंजय तिवारी, संध्या जैन, डाँ. गुंजलता साहा,गोपाल शर्मा, वैकुण्ठ महानंद, रामबरन कोरी,शिवमंगल सिंह,हाजी गौहर, नावेद रजा,बलदाऊ राम साहू और भगवती चरण यदु आदि शामिल थे।

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