शिमला मिर्च उत्पादन का उभरता हुआ केंद्र बना जबलपुर , देशव्यापी व्यापार में निभा रहा अहम भूमिका

 जबलपुर

 मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का जबलपुर जिला शिमला मिर्च (Capsicum) उत्पादन के क्षेत्र में तेजी से अपनी अलग पहचान बना रहा है. यहां की उन्नत कृषि पद्धतियां और संरक्षित खेती ने न केवल शिमला का उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि इसकी गुणवत्ता को भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. क्षेत्र के किसान अब पारंपरिक तरीकों को छोड़कर आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उपज क्षमता में कई गुना वृद्धि हुई है. आइए आपको यहां की शिमला मिर्च और उसकी खेती से जुड़ी खास बातें बताते हैं.

जबलपुर की शिमला मिर्च की उत्पादन और गुणवत्ता

जबलपुर में शिमला मिर्च की प्रमुख किस्में जैसे "कैलिफोर्निया वंडर" और "इंद्रा" उगाई जाती हैं. इनकी उपज क्षमता प्रति एकड़ 125-150 क्विंटल तक की होती है. संरक्षित खेती (पॉलीहाउस और नेटहाउस) का उपयोग करके किसान प्रति हेक्टेयर 80-100 टन उत्पादन कर सकते हैं, जो खुले में खेती की तुलना में तीन गुना ज्यादा है. इस खेती से उत्पाद की गुणवत्ता भी बेहतर होती है और वह रोगों से अधिक सुरक्षित रहता है.

ऑनलाइन बिक्री और राष्ट्रीय व्यापार

जबलपुर के किसान अब अपनी उपज सीधे थोक व्यापारियों तक ऑनलाइन माध्यम से पहुंचा रहे हैं. उपज की तस्वीरें साझा कर व्यापारियों से मूल्य तय किया जाता है. इससे किसानों को बेहतर कीमत मिल रही है और बिचौलियों पर निर्भरता कम हुई है. इस मॉडल ने जबलपुर को शिमला मिर्च के देशव्यापी व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया है.

संरक्षित खेती के फायदे

पॉलीहाउस और नेटहाउस के जरिए उत्पादन को पर्यावरणीय प्रभावों से बचाया जा सकता है. इसमें पौधों को नियंत्रित तापमान, नमी और उर्वरक दिए जाते हैं. इसकी मदद से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में सुधार होता है. इस तकनीक से किसान अधिक लाभ कमा रहे हैं.

शिमला की खेती में चुनौतियां और भविष्य

संरक्षित खेती की उच्च लागत और इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता किसानों के लिए एक तरह की चुनौती है. लेकिन, सरकारी योजनाओं और सब्सिडी से किसानों को इसे अपनाने में मदद मिल रही है. इस नई दिशा से न केवल स्थानीय किसानों की आय में वृद्धि हुई है, बल्कि जबलपुर को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान भी मिली है.

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