महाराजा मार्तण्ड सिंह व्हाइट टाइगर सफारी का निरीक्षण, अब मोहन की दहाड़ फिर से सुनाई देगी

मैहर
मध्यप्रदेश के मैहर जिले स्थित मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी को एक बार फिर सफेद बाघ 'मोहन' मिल गया है। सफेद बाघ को एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत पिछले महीने ग्वालियर जू से लाया गया था। रविवार को सफेद नर बाघ का नामकरण डेप्युटी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने किया है। इसका नाम मोहन रखा गया है।

निरीक्षण करने पहुंचे थे डेप्युटी

दरअसल, रविवार को प्रदेश के डेप्युटी सीएम राजेन्द्र शुक्ल ने मैहर स्थित महाराजा मार्तण्ड सिंह व्हाइट टाइगर सफारी का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने महाराजा मार्तण्ड सिंह व्हाइट टाइगर सफारी के निर्माणाधीन बाड़ों का कार्य शीघ्र पूर्ण कराएं जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि निर्माणाधीन बाड़ों का कार्य जल्दी पूरा कराए ताकि वहां विभिन्न प्रजातियों के जीवों को रखा जा सके।

साथ ही उन्होंने सरीसृप प्रजाति के लिए बनाए जा रहे रेप्टाइल हाउस के निर्माण कार्य का भी निरीक्षण किया है। साथ ही पूर्ण गुणवत्ता के साथ कार्य को पूरा करने के निर्देश दिए हैं।

व्हाइट टाइगर का नाम मोहन रखा

डेप्युटी सीएम राजेन्द्र शुक्ल ने व्हाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर का भ्रमण कर ग्वालियर से लाए गए नए मेहमान व्हाइट टाइगर के शावक को देखा है। उन्होंने नर बाघ शावक का नाम विंध्य क्षेत्र के सफेद बाघ के पितामह 'मोहन' के नाम को जीवंत रखने के लिए फिर से सफेद बाघ का नाम मोहन रखा है।

परिंदों को देखकर खुश हुए डेप्युटी सीएम

वहीं, डेप्युटी सीएम ने निर्माणाधीन रेप्टाइल हाउस के निरीक्षण के दौरान सर्प की प्रजातियों और उनके रहवास से संबंधित जानकारी भी ली है। साथ ही वर्ल्ड एवियरी बाड़े का भ्रमण कर रंग-बिरंगे परिंदों को भी देख खुश हुए है।
पहले महाराजा ने रखा था नाम मोहन

गौरतलब है कि मोहन की कहानी रीवा से शुरू होती है जो पूरी दुनियाभर में मशहूर है। आपको बता दें कि 27 मई 1951 को रीवा महाराजा मार्तण्ड सिंह को सीधी जिले के पनखोरा गांव के बरगड़ी जंगल में शिकार के दौरान एक 6 माह के सफेद बाघ का शावक मिला था। महाराजा ने उसका नाम 'मोहन' रखकर अपने संरक्षण में पाला था। मानता जाता है कि आज दुनिया में जितने भी सफेद बाघ हैं, वे सभी मोहन के वंशज माने जाते हैं।

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