ओरछा में राम उत्सव CM मोहन यादव और शिवराज समेत तमाम नेता हुए शामिल

ओरछा
अयोध्या में राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर मध्यप्रदेश में जश्न और उत्साह का माहौल है। उज्जैन के भगवान महाकाल मंदिर समेत प्रदेश के सभी छोटे-बड़े मंदिरों में विशेष साज सज्जा की गई है।आपको बता दें की सीएम मोहन यादव आज अयोध्या ना जाकर मध्यप्रदेश के ओरछा के श्रीरामराजा सरकार मंदिर में शामिल हुए है। ओरछा की बेतवा नदी के कंचना घाट पर सीएम मोहन यादव एक लाख दीप प्रज्जवलित कर दीपावली जैसा त्यौहार आज मनाया जाएगा। ओरछा में सीएम मोहन यादव के साथ राज्य के पूर्व के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद है।

आज अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ-साथ मध्यप्रदेश के ओरछा में राम राजा सरकार के मंदिर में भी विशेष आयोजन किया गया था। सीएम डॉ मोहन यादव और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओरछा पहुंचे। इसी के साथ उन्होंने राम राजा सरकार के मंदिर में विशेष आयोजन भाग लिया और पूरे कार्यक्रम में शिरकत की।

रानी की जिद पर ओरछा आए थे भगवान राम
पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह
कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश भगवान राम की उपासक थीं. इसके चलते राजा और रानी के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होती रहती थी. एक बार राजा मधुकरशाह ने रानी कुंवरी गणेश से वृंदावन चलने का कहा, लेकिन रानी ने अयोध्या जाने की जिद की. इस पर राजा ने कहा कि तुम क्या राजा राम को लेकर आ पाओगी. यह सुनते ही महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या के लिए रवाना हो गई और 21 दिन की कठिन तपस्या की, जिसके बाद भी भगवान राम प्रकट नहीं हुए. इसके बाद रानी ने सरयू नदी में छलांग लगा दी.

भगवान राम ने रखी थी तीन शर्तें
कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए. तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया, जिस पर भगवान राम ने उनके सामने तीन शर्तें रखी थी. भगवान राजाराम ने महारानी के सामने जो तीन शर्तें रखी थी उसमें पहली शर्त थी कि मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी ओरछा के राजा के रूप में विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी. तीसरी और आखिरी शर्त थी कि खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी. महारानी ने भगवान राम की यह तीने शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली. इसके बाद रामराजा ओरछा आ गए, तब से भगवान यहां विराजमान हैं.

 

 

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