पाकिस्तान में सत्तारूढ़ दलों ने ‘बंदूक की नोंक पर’ बातचीत करने से किया इनकार
इस्लामाबाद
पाकिस्तान के सत्तारूढ़ गठबंधन दलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें उसने सभी राजनीतिक दलों से पंजाब में चुनाव की तारीख पर सहमति बनाने के लिए कहा है।
शीर्ष अदालत ने पंजाब प्रांत में 14 मई को चुनाव कराने का आदेश दिया है लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन दलों का कहना है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से बातचीत न्यायालय की निगरानी में नहीं हो सकती है।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने राजनीतिक शक्तियों के बीच बातचीत के लिए अदालत के आदेश को 'बंदूक की नोंक पर वार्ता' कराना बताया।
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, पीपीपी अध्यक्ष ने कहा कि पीपीपी सहित सभी गठबंधन दलों के प्रमुख अदालत की निगरानी में बातचीत के संबंध में शीर्ष अदालत के आदेश से असहमत हैं और आदेश को हम बंदूक की नोक पर बातचीत करने जैसा मानते हैं।
सत्तारूढ़ गठबंधन पर पीटीआई के साथ बातचीत के लिए जारी दबाव का उल्लेख करते हुए श्री भुट्टो जरदारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वह सत्तारूढ़ सहयोगियों को विपक्ष के साथ बातचीत करने के लिए राजी कर लेंगे लेकिन शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप ने सहयोगी दलों के बीच आम सहमति बनाना कठिन कर दिया है।
उन्होंने कहा कि पीटीआई के साथ बातचीत को लेकर सत्तारूढ़ दलों में मतभेद है और वह आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अदालत के आदेश ने मेरा काम और मुश्किल बना दिया है।
पंजाब में 14 मई को चुनाव कराने के शीर्ष अदालत के आदेश के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पीपीपी प्रमुख ने कहा कि देश में केवल तीन लोगों का मानना था कि चुनाव इसी दिन होने चाहिए और क्या चुनाव कराने के लिए 90 दिन की शर्त खैबर पख्तूनख्वा के चुनावों पर लागू नहीं होती है।
जेयूआई-एफ के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने पीटीआई प्रमुख इमरान खान के साथ बातचीत की संभावना से भी इनकार किया।
डेरा इस्माइल खान में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, जेयूआई-एफ प्रमुख ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एक ऐसे व्यक्ति के साथ बातचीत कैसे की जा सकती है, जिसने कहा कि वह संसद में दो तिहाई बहुमत प्राप्त करने के बाद ही चुनावों को स्वीकार करेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि पीटीआई प्रमुख चाहते हैं कि सभी चीजें उनकी इच्छा के अनुसार हों क्योंकि वह पहले ही कह चुके हैं कि साधारण बहुमत मिलने पर भी वह विधानसभाओं को भंग कर देंगे।
उन्होंने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि श्री इमरान खान को अब तक अयोग्य घोषित कर देना चाहिए था लेकिन उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बनाया जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि इमरान खान ने विधानसभाओं को क्यों भंग किया? अगर उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया है, तो यह बेवकूफी है और उन्हें राजनीति से बाहर रखा जाना चाहिए। वह अक्षम हैं और हम उन्हें अक्षम मानते हैं।
दूसरी ओर, पीटीआई नेता फवाद चौधरी, जो पहले सीधी बातचीत के पक्ष में थे, ने कहा कि सरकार के साथ शीर्ष अदालत की निगरानी में ही बातचीत की जा सकती है।
इससे पहले, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को विनियमित करने वाले प्रस्तावित कानून के लागू होने से रोकने वाले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की आलोचना की।
जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख अमीर सिराज-उल-हक ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव में पहले ही देरी हो चुकी है और चुनाव 205 दिन बाद भी हो सकते हैं।
श्री हक शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ के सामने पेश हुए। जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल और न्यायमूर्ति इजाज़ुल अहसेन और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर ने की। पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई की जिसमें नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के आम चुनाव एक ही तारीख पर कराने की मांग की गई थी।
उन्होंने कहा, “चुनाव में पहले ही 90 दिनों की देरी हो चुकी है। श्री हक ने कहा, अगर दो प्रांतीय विधानसभाओं के भंग होने के बाद 105 दिनों तक चुनाव रुक सकते हैं, तो वे 205 दिनों के बाद भी हो सकते हैं।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, सेना और पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) को राजनीति से दूर रहना चाहिए और उन्होंन सभी से अपने रुख से पीछे हटने का आग्रह किया। श्री हक ने कहा, “न्यायपालिका को इस मामले को राजनीतिक दलों पर छोड़ देना चाहिए और अपने वचन का सम्मान करना चाहिए।”
हक ने अदालत से आग्रह किया कि एक राजनीतिक संवाद के लिए सभी राजनीतिक प्रतिभागियों के लिए अपने-अपने पदों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए लचीलापन लाना आवश्यक है और पार्टियों का दृष्टिकोण अहंकार या गर्व से निर्धारित नहीं होना चाहिए।
हक ने कहा कि सार्वजनिक मामलों में संवाद और परामर्श एक विकल्प नहीं है, बल्कि पवित्र कुरान में वर्णित एक कर्तव्य है।