अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे बताया था मंदिर, हरबिलास शारदा हैं, जो उस दौर में अजमेर में जानेमाने शख्सियत थे

अजमेर
अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे शिवमंदिर होने का दावा करते हुए अजमेर की एक अदालत में याचिका दायर किए जाने को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। अदालत ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया तो इस मुद्दे पर बयानबाजी की बाढ़ आ गई। याचिकाकर्ता हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने वाद का आधार एक किताब को बनाया है जो 113 साल पहले प्रकाशित हुई थी। इस किताब के लेखक हरबिलास शारदा हैं, जो उस दौर में अजमेर में जानेमाने शख्सियत थे।

3 जून 1867 को अजमेर में जन्मे हरबिलास शारदा बीए की डिग्री ली थी। वह आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड जाना चाहते थे, लेकिन तभी पिता की मौत की वजह से उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों से प्रेरित होकर वह उनकी संस्था से जुड़ गए थे। 21 साल की उम्र में वह अजमेर आर्य समाज के प्रमुख बन गए थे।

शुरुआत में वह शिक्षक बने और फिर बाद में न्यायिक सेवा में चले गए। 1892 में वह अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में नियुक्त हुए। वह कई अदालतों में जज के रूप में अपनी सेवा देने के बाद वह दो बार विधायक भी बने। 1926 और 1930 में वह अजमेर-मेरवाड़ा सीट से प्रतिनिधि चुने गए थे। 1929 में उन्होंने ही बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित कराया था जिसे शारदा ऐक्ट के नाम से भी जाना जाता है।

हरबिलास सारदा ने कई किताबें भी लिखीं। इनमें 'अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिसक्रिप्टिव' प्रमुख है। 1911 में प्रकाशित हुई इस किताब में उन्होंने ख्वाजा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के जीवनकाल और उनके दरगाह को लेकर कई अहम बातें लिखी हैं। इसी किताब में हरबिलास सारदा ने कहा है कि दरगाह का निर्माण मंदिर अवशेषों पर किया गया है। अब इस किताब को ही आधार बनाकर कोर्ट में वाद दायर किया गया है।

दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक वाद अजमेर की स्थानीय अदालत में दायर किया गया था। अदालत ने बुधवार को वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया और अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब उत्तर प्रदेश की एक स्थानीय अदालत ने संभल स्थित जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि इस जगह पर पहले मंदिर था। इसके बाद हुई हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई। अजमेर के इस ताजा विवाद के कारण कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि यह शहर भी 'सांप्रदायिक तनाव' की ओर बढ़ सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button