सियासी पावर हाउस में स्पीकर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, मंत्रियों व जोगी परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर

रायपुर.

प्रदेश में सबसे अधिक विधानसभा सीटों वाला बिलासपुर संभाग खनन उद्योगों के साथ विद्युत उत्पादन और सियासत का भी पावर हाउस है। यहां विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव, दो मंत्रियों उमेश पटेल व जयसिंह अग्रवाल मैदान में हैं। पूर्व सीएम अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी, बहू ऋचा जोगी, आईएएस से राजनेता बने ओपी चौधरी और लखीराम अग्रवाल के पुत्र पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी मैदान में हैं। कई सीटों पर बसपा और जेसीसीजे के मजबूत दखल से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

शहरों  में अधिकतर गैरप्रांत के बाशिंदे हैं, जबकि गांवों में पिछड़ा, आदिवासी और अनुसूचित जाति की बहुलता है। शहरी रोजगार, मूलभूत सुविधाओं के विकास और घोटालों को मुद्दा मानते हैं। ग्रामीण मतदाता घोषणापत्रों में हित तलाश रहे हैं। पिछले चुनाव में संभाग की 24  में से 12 कांग्रेस, 7 भाजपा और 3 जेसीसीजे और 2 बसपा के खाते में थीं। इस बार बलौदाबाजार जिले के  बिलाईगढ़ और रायगढ़ के सारंगढ़ को नया जिला बनाने से संभाग में सीटों की कुल संख्या 25 हो गई है।

पहले घर दुरुस्त कर लें फिर बाहर की देखेंगे
शहर के मगरपारा इलाके में मिले ऑटो रिक्शा चालक आकाश वैष्णव ने बताया, वह कोटा क्षेत्र के रहने वाले हैं। कर्जमाफी, धान का समर्थन मूल्य, भूमिहीनों और महिलाओं को सालाना भत्ता देने जैसी खुद के तात्कालिक फायदे की योजनाएं  और उनका सीधा लाभ उन्हें मिलेगा, वह उसी तरफ अपना ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।  ललित देवांगन आगे आकर बोले, पहले अपना घर दुरुस्त कर लें, फिर बाहर की सोचेंगे। यह जरूर कहा कि बेरोजगारी भत्ते की जगह काम के बदले मेहनताना मिले तो बेहतर संदेश जाएगा। सरकार को इसके लिए युवाओं को तैयार करना चाहिए।

दो चेहरों में मुख्यमंत्री देख रही जनता
सक्ती सीट पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के सामने भाजपा के खिलावन साहू हैं। पिछले चुनाव में महंत ने भाजपा ने मेधाराम साहू को 30 हजार से अधिक वोटों से हराया था। इस सीट पर ओबीसी मतदाता निर्णायक हैं। कांग्रेस के सत्ता में बने रहने पर महंत का नाम भी सीएम पद की चर्चा में शामिल है। लोरमी सीट से चुनाव लड़ रहे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के संदर्भ में चर्चा है कि भाजपा आई तो सीएम ओबीसी वर्ग से होगा। साहू समाज के अरुण के खिलाफ कांग्रेस ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थानेश्वर साहू को मैदान में उतारा है। वैसे इन दो सीटों पर आमने-सामने की लड़ाई है पर बड़े चेहरों से उम्मीदें भी बड़ी हैं।

सैंकड़ों कंपनियां पर नौकरी की गारंटी नहीं :
बिलासपुर के पुराने बस स्टैंड के पास  रविकांत त्रिपाठी ने बताया, वह कंप्यूटर साइंस में बीटेक करने के बाद बेरोजगार हैं। सैकड़ों कंपनियां होने के बाद भी नौकरी दिलाने की गारंटी सरकार नहीं लेती। खुद का काम शुरू किया है, लेकिन उम्मीद के अनुरूप काम नहीं नहीं मिल रहा। बोले, यह सरकार तो नौकरियों के लिए भी पाक-साफ भर्तियां नहीं कर सकी। भाजपा के 15 साल के कार्यकाल से तुलना करें तो कांग्रेस के ये पांच साल हमारी उम्मीदों को रौंदते रहे।

पूर्व आईएएस और सरकार के दो मंत्री भी कसौटी पर
आईएएस से भाजपा नेता बने ओपी चौधरी रायगढ़ सीट से मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस से विधायक प्रकाश नायक हैं। चौधरी को पिछले चुनाव में खरसिया से हार का सामना करना पड़ा था। पिछले दिनों सभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि आप इन्हें चुनाव जिता दें तो मैं इन्हें बड़ा आदमी बना दूंगा। शाह के बयान से चौधरी क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं। प्रदेश के मंत्री उमेश पटेल इस बार भी खरसिया से और जयसिंह अग्रवाल कोरबा सीट से हैं। बिलासपुर सीट से रमन सरकार में मंत्री रहे अमर अग्रवाल एक बार फिर से मैदान में हैं। पिछले चुनाव में उन्हें कांग्रेस के शैलेष पांडेय ने यूपी और बिहार के मतदाताओें के सहारे 11 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी थी।

कड़े मुकाबले में रेणु जोगी और उनकी बहू
जेसीसीजे से प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी कोटा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। यहां से भाजपा ने दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र प्रबल प्रताप सिंह जूदेव और कांग्रेस ने अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में लगभग तीन हजार वोटों से जीतीं रेणु जोगी की राह इस बार आसान नहीं है। जोगी की बहू ऋचा जोगी अकलतरा विधानसभा से मैदान में हैं। उनके खिलाफ भाजपा से विधायक सौरभ सिंह हैं। पिछले चुनाव में ऋचा लगभग 18 सौ वोटों से चुनाव हार गई थीं। कांग्रेस यहां बड़े अंतर से तीसरे स्थान पर रही थी। इस बार भी यहां आमने-सामने की लड़ाई है। अजीत जोगी के बिना परिवार के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने की चुनौती है।

बसपा पर नजर
बसपा को यहां जांजगीर-चांपा और आसपास के क्षेत्र से हर चुनाव में दो सीटों पर जीत मिलती रही है। हालांकि, वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 2008 के चुनाव में बसपा को 6.1 फीसदी वोट मिले थे। पिछले चुनाव में यह प्रतिशत 3.87 रह गया।

अब यह स्थिति
संभाग में सीटों की कुल संख्या 25 है। कांग्रेस विधायकों की संख्या 14 हो गई। जेसीसीजे के विधायक धर्मजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा की सीटें आठ हुईं और जेसीसीजे की सिर्फ एक रह गई।

प्रमुख मुद्दे
औद्योगिक संस्थानों में स्थानीय लोगों को रोजगार और उद्योगों का प्रदूषण बड़ा मुद्दा है। उद्योगों की जरूरत के अनुरूप कौशल विकास का कोई इंतजाम नहीं। शहरों से गांवों की कनेक्टिविटी आज भी समस्या है। कई गांव ऐसे हैं, जहां पहुंचना आसान नहीं। कांग्रेस की कर्जमाफी और मोदी की गारंटी चर्चा का विषय है।

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