गूगल व चमत्कारी बाबाओं के फेर में लोग आज अपना विवेक खो बैठे हैं: दीदी मां मंदाकिनी

रायपुर

गूगल व चमत्कारी बाबाओं के फेर में लोग आज अपना विवेक खो बैठे हैं,किसी वक्ता ने कहा और आपने उसे मान लिया। न तो आपने इसे स्वीकार किया और न ही छोड़ा, इससे आपका विवेक कहां जागृति हुआ? इसका मतलब यह है कि आपकी जो श्रद्धा है वह वास्तविक न होकर अन्धश्रद्धा में चली गई है। बिना विवेक के किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है क्योंकि यहां तो नॉलेज का युग चल रहा है। कथित जानकारी तो आपको चारों ओर से मिल जाएगाी इसमें सबसे बड़ा काम गूगल बाबा का है,जिसमें कुछ भी सर्च मारो सब मिल जाता है। इसीलिए श्रीरामकिंकरजी महाराज ने कथा के माध्यम से यह बताया कि पहले सुने, समझें, आत्मसात करें फिर विवेक को जागृत कर अपने कार्य का चयन करें।

मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने जब रामचरित मानस का निर्माण किया तो इससे बड़ा चमत्कार और क्या हो सकता है। यह सिर्फ राम की कथा नहीं है यह आपकी और हमारे जीवन की कथा है। दर्पण किसी युग विशेष को नहीं दिखाता है उसका काम यह है कि वह तत्कालिक घटनाओं को दिखाता है। यदि रामचरित मानस दर्पण है तो जो भी मानस पढ़ेगा तो उसे अपने आप भगवान राम का दर्शन हो जाएगा। पर उसे देखने के लिए दृष्टि चाहिए और दृष्टि कौन दे सकता है संत। अगर संतों के माध्यम से हमें पूर्ण दृष्टि प्राप्त हो जाए तो इन दिव्य -अमरग्रंथों में छिपा हुआ संदेश है उसे आत्मसात करके लाभान्वित हो सकते है। प्रभु की लीलाएं शाश्वत है,प्रभु के अवतरण का उद्देश्य है मानव जीवन को श्रृंगारित करना। सुख- दुख और पीड़ा से व्यक्ति बचना चाहता है उसको प्रभु ने अपनी लीला के द्वारा बताया है। महत्वपूर्ण यह है कि पहले हम उन लीलाओं को समझे, तब तो उनका दर्शन करेंगे।

यदि हम यही चाहेंगे कि बिना कुछ करें हमें सबकुछ मिल जाए, इसका उदाहरण देते हुए दीदी माँ ने कहा कि अगर बच्चा साल भर न पढ़ें और बेलपत्र लगाकर उसे शिवजी में चिपका दे तो वह परीक्षा में अव्वल नंबर लेकर पास हो जाएगा। ठीक यह बहुत अच्छी बात है, हम उस बाबा की कही बातों का खंडन नहीं करना चाहते। पर हमारे जीतने भी ऋषि मुनि थे और उन्होंने जो यह सब ग्रंथ लिखा क्या वह झूठ है? भगवान कृष्ण और राम ने चार मार्ग बताए अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। अर्थ को पाने का अधिकार हम सबको है पर उसे किस तरह से अर्जित करना है यह पद्धति हमें जानना आवश्यक है क्योंकि लक्ष्य ही महत्वपूर्ण नहीं है मार्ग की भी जरुरत पड़ती है। धर्म मार्ग पर चलकर आप अपने किसी भी काम को पूर्ण करें यह तो शास्त्रीय पद्धति हुई। अधर्म मार्ग से भी उनकी इच्छाएं पूरी हो इसलिए व्यक्ति चमत्कारी बाबाओं  के पास जा रहे है जो कहते कि ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा। लाखों की संख्या में लोग इन बाबाओं  के पास एकत्रित हो रहे है और वह यह समझ रहे है कि उनका समाधान हो रहा है, पर यह स्थायी समाधान नहीं है। इस तरह के कार्य से उन पर जो प्रभाव पड़ता है उससे अन्धश्रद्धा आ जाती है और यह साधु-संत ऐसे ही है। इसलिए हमारे गुरुदेव ने बताया है कि व्यक्ति के सामने सही और गलत दोनों मार्ग को रखें।

भगवान के नाम का दुरुपयोग हो ही नहीं सकता
आप कोई भी कार्य करें, लेकिन भगवान के नाम का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। भगवान का नाम लेकर भी जो भी व्यक्ति राजनीति करता है तो वह स्वार्थ के कारण। राजनीति तो भगवान श्रीराम ने की थी, अगर वैसी राजनीति हम सीख लें तो सबका भला हो जाएगा। भगवान राम अपने आप में परिपूर्ण है इसलिए उनके नाम का दुरुपयोग कभी हो ही नहीं सकता, उनके नाम से केवल कल्याण के अलावा कुछ नहीं हो सकता। यह जो हमारी उदारता है सबको स्वीकार है, सबके प्रति श्रीराम का नाम होना चाहिए।

अनुसरण करने से पहले जान तो लें कि वास्तविकता क्या है?
किसी सिद्धांत को रट न ले सिद्धांत को अपने मूल में उतार लें। एक उदाहरण देते हुए दीदी माँ ने कहा कि पाश्चात्य देशों में लोग छोटे कपड़े क्यों पहनते है, इसका कारण यह है वहां साल में एक या दो महीने ही सूर्य देवता के दर्शन होते है इसलिए उन्हें पाने के लिए इस तरह के कपड़े पहते है। इसलिए देखा गया है कि उन लोगों में कैल्शियम की कमी बहुत रहती है, इसके साथ ही वहां स्कीन कैंसर के मरीज भी अधिक पाए जाते है और जब सूर्य देव बाहर निकलते है तो उसे वह पाने के लिए आनंदित हो जाते है और उसे ग्रहण करने के लिए इस प्रकार के कपड़े पहनते हैं, यह वहां की संस्कृति नहीं है। लेकिन हमारे यहां के लोगों ने उसका यह अर्थ लिया कि वे जो पहन रहे है अंग प्रदर्शन के लिए फैशन कर रहे है। इसलिए बिना समझे हम किसी सिद्धांत को अपनाएंगे तो उसका दुष्प्रभाव होगा। हमारे सनातन धर्म का जो दृष्टिकोण है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहा है, वह संदेश उन तक नहीं पहुंच पाया है।

भगवान श्रीराम ने नहीं सिखाया कि अपना धर्म छोड़ें
आज जो धर्म परिवर्तन की बातें आ रही हैं चाहे वह किसी भी धर्म का हो क्या यह एक दिन की लीलिसता है, यह कितने सालों से चला आ रहा है। जिस जागरण की बात करतें हैं,यह जागरण तो पहले हो जाना चाहिए था। भगवान श्रीराम ने कहीं भी यह नहीं सिखाय कि अपने धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपनाओ। उन्होंने शबरी के झूठे बेर भी खाए और केंवट की नांव में बैठकर वनवास को निकले। प्रभु श्रीराम ने उन्हीं का पक्ष लिया जो देहभाव से हट गया, लेकिन हम इसके विपरीत होकर दूसरा पक्ष लेकर कार्य करने लग गए है।

आज इतना बड़ा पतन हम समाज में देख रहे है कि दूरियां बनते जा रही है। इसमें सनातन धर्म या ऋषि मुनियों का कोई दोष नहीं है। व्यक्ति की त्रुटि के कारण आज समाज की यह स्थिति है। एक ऐसा वैश्विक धर्म होना चाहिए जिससे छोटे-छोटे समुदाय में बंट गए लोगों को एकत्रित किया जा सके। जिसमें एक ऐसा पात्र हो जो सबके लिए आदरणीय हो। इस पर हमें सामूहिक व खुला मंच लेकर चिंतन करना चाहिए कि यह दूरियां समाप्त कैसे करें।

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