गंगा दशहरा की पूजा से एक लाख गुना अधिक मिलेगा फल

गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा मोक्षदायिनी गंगा की पूजा के विशेष दिन हैं। मान्यता है कि गंगा सप्तमी के दिन माता गंगा शिवजी की जटा में उतरीं थीं और गंगा दशहरा के दिन इनका अवतरण धरती पर हुआ था। इस कारण दोनों दिन गंगाजी की पूजा और व्रत का विधान है। इस साल व्यतीपात योग (vyatipat yog ) में गंगा दशहरा (Ganga Dussehra )मनेगा। इससे यह तिथि खास हो गई है। आइये जानते हैं कब है गंगा दशहरा, गंगा दशहरा की पूजा विधि और महत्व क्या है।

गंगा दशहरा का महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन माता गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान और व्रत का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस तिथि पर गंगा स्नान से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मां गंगा की पूजा से रिद्धि सिद्धि, यश और सम्मान की प्राप्ति होती है।

गंगा अवतरण का समय

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि की शुरुआत 29 मई 2023 को सोमवार के दिन सुबह 11.49 बजे से हो रही है, यह तिथि मंगलवार तीस मई 1.07 पीएम पर संपन्न होगी। उदया तिथि में गंगा दशहरा 30 मई को मनाया जाएगा।

हस्त नक्षत्र का प्रारंभः 30 मई 2023 को सुबह 4.29 एएम से
हस्त नक्षत्र का समापनाः 31 मई 2023 को सुबह 6.00 एएम पर

व्यतीपात योग का प्रारंभः 30 मई 2023 को 8.55 पीएम से
व्यतीपात योग का समापनः 31 मई 2023 को 8.15 पीएम पर

व्यतीपात योग का महत्वः मान्यता है कि व्यतीपात योग के समय किया गया जप, पूजा, पाठ, प्राणायाम, माला से जप या मानसिक जप, भगवान सूर्य नारायण को प्रसन्न करने वाला होता है। व्यतीपात योग में मनुष्य जो भी काम करता है, उसे एक लाख गुना अधिक फल प्राप्त होता है।

गंगा दशहरा पूजा विधि

  • 1. आज के दिन व्यक्ति को गंगा स्नान करना चाहिए और जो मनुष्य गंगा स्नान के लिए नहीं जा सकता, घर पर स्नान के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें।
  • 2. घर के मंदिर में दीप जलाए और माता गंगा का स्मरण करे।
  • 3. माता गंगा की आरती करे और दान करें।

माता गंगा की पूजा के मंत्र

ऊँ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः

गंगा मैया की आरती

ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।। ॐ जय गंगे..।।
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।। ॐ जय गंगे..।।

पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।। ॐ जय गंगे…।।
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता।। ॐ जय गंगे…।।

आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वहीं सहज में, मुक्ति को पाता।। ॐ जय गंगे…।।

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