कोल जनजाति के महत्व को दर्शाता कोल जनजाति सम्मेलन 24 मई को मुख्यमंत्री निवास परिसर में

म.प्र. की तीसरी सबसे बड़ी कोल जनजाति का भारतीय संस्कृति, परम्परा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अहम् योगदान

भोपाल
मध्यप्रदेश की अमूल्य जनजातीय विरासत से समृद्ध कोल जनजाति के महत्व को रेखांकित करने के लिये 24 मई को मुख्यमंत्री निवास परिसर में कोल जनजाति सम्मेलन हो रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोल जनजाति के हितग्राहियों को योजनाओं के हितलाभ वितरित करेंगे। सम्मेलन में म.प्र. राज्य स्तरीय कोल जनजाति प्राधिकरण के अध्यक्ष रामलाल रौतेल, अध्यक्ष जिला पंचायत सतना रामखेलावन कोल, अध्यक्ष जिला पंचायत रीवा श्रीमती नीता कोल, विधायक ब्यौहारी शरद कोल सहित अन्य जनजातीय जन-प्रतिनिधि सहभागिता करेंगे।

कोल जनजाति मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है। इनका देश की संस्कृति, गौरवशाली परम्परा और स्वंतत्रता आन्दोलन में अहम् योगदान है। प्रदेश में कोल जनजाति की 10 लाख से भी ज्यादा जनसंख्या मुख्य रूप से रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना एवं सिंगरौली जिलों में निवास करती है। कोल जनजाति उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, असम, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्य में भी निवास करती है। यह खरवार समूह की एक प्राचीन जनजाति है। यह अपना संबंध राम भक्त शबरी माता से मानते हैं। महर्षि पाणिनी के अनुसार कोल शब्द 'कुल' से निकला है, जो ‘समस्त’ का भाव-बोधक है।

कोल जनजाति मुख्य रूप से वनोपज-संग्रहण, कृषि और मजदूरी से जीविकोपार्जन करते हैं। सरकार द्वारा जनजातियों के विकास के लिये संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलने से और औद्योगीकरण बढ़ने से कोल जनजाति का भी विकास हुआ है। अब इनके बच्चे भी उच्च शिक्षा में आगे आ रहे हैं।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी कोल जनजाति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस जनजाति ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के विरुद्ध वर्ष 1831 में कोल विद्रोह किया था। विद्रोह का नेतृत्व बुधू भगत और मदारा महतो ने किया था। यह विद्रोह असमानता, शोषण और अत्याचार के विरूद्ध जनजातियों के लिये प्रेरणा का स्रोत बना। इसके बाद अन्य कई जनजातियों ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद की।

 

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