बिहार में 2015 की तरह बन रहे NDA के सियासी समीकरण, क्या जीतन राम मांझी की पूरी होगी मुराद?

पटना

2023 में बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का स्वरूप 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह बनता दिख रहा है। उस समय विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ रामविलास पासवान की लोजपा, उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतन राम मांझी की पार्टी साथ में थी। मंगलवार को एससी-एसटी कल्याण मंत्री डॉ. संतोष सुमन के इस्तीफे के बाद अब इसकी अधिक संभावना है कि वे जल्द ही विधिवत एनडीए का दामन थामेंगे। इससे यह साफ है कि इस बार भी बिहार में एनडीए का समीकरण 2015 के विस चुनाव की तरह ही हो जाएगा।

NDA के लिए 2015 जैसे बन रहे सियासी समीकरण
मौजूदा समय में भाजपा के साथ रालोजपा के पशुपति कुमार पारस मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं। वहीं चाचा से अलग होकर पार्टी बनाने वाले चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) का प्रेम भी भाजपा के प्रति समय-समय पर परिलक्षित होते रहता है। खुद को मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान की निष्ठा कभी भाजपा के प्रति कम नहीं हुई। रालोसपा का विलय कर जदयू में जाने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने एक बार फिर से अपनी अलग राह बनाते हुए रालोजद बना लिया है। बीते दिनों उनकी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात हो चुकी है। इस मुलाकात के बाद ही यह कयास लगाए जा रहे हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा भाजपा के साथ ही चुनावी मैदान में जाएंगे। इस तरह भाजपा एक बार फिर साल 2015 के विधानसभा चुनाव का ही समीकरण बनाने में कामयाब होती दिख रही है

राजद को 80 और जदयू को 71 सीटें मिली थीं
बात महागठबंधन की करें तो जदयू-राजद के साथ कांग्रेस इसमें शामिल थी और यह 2015 के चुनाव के ठीक पहले बिहार में अस्तित्व में आया था। विस चुनाव में जब सीटों का बंटवारा हुआ तब एनसीपी भी इसका हिस्सा थी। जदयू, राजद को 100-100, कांग्रेस को 40 जबकि एनसीपी को तीन सीटें मिली थीं लेकिन एनसीपी गठबंधन से अलग हो गया और एक-एक सीटें जदयू, राजद व कांग्रेस में बंट गईं। चुनाव परिणाम भी महागठबंधन के पक्ष में आया। कुल 178 सीटों पर जीत के साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी। राजद 80, जदयू 71 जबकि कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी।

2015 में 20 सीटों पर लड़ी थी हम
वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से भाजपा 160 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उसे 53 और घटक दलों के खाते में 5 सीटें आई थीं। सहयोगी पार्टियों में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी 40 और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी 23 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी थी। दोनों को क्रमश 2-2 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (से) 20 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और मांझी अकेले विधानसभा पहुंच पाये थे। इस बार लोकसभा चुनाव में भी मांझी की पार्टी ताल ठोक रही है।

जीतन राम मांझी की मुराजद होगी पूरी? 

 बीते दिनों मांझी पांच-छह सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं। ऐसे में एनडीए में आने पर भाजपा की ओर से कितनी सीटें मिलती है, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राजनीतिक गलियारे में ऐसी चर्चा है कि मांझी की पार्टी को गया सुरक्षित सीट दी जा सकती है। यहां से मांझी के बेटे पूर्व मंत्री डॉ. संतोष सुमन उम्मीदवार हो सकते हैं। दूसरी तरफ, खुद मांझी किसी राज्य के राज्यपाल बनाए जा सकते हैं।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button