चौथी बार में भी नहीं बिकी ये सरकारी कंपनी, क्या अब लटकेगा ताला?

 नई दिल्ली
हेलीकॉप्टर सर्विस देने वाली सरकारी कंपनी पवनहंस (Pawan Hans) की बिक्री प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो पा रही है, एक बार फिर बेचने का प्लान अटक गया है. ये कंपनी भारी घाटे में चल रही है और इस वजह से सरकार ने इसमें अपनी 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है, लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि केंद्र इस कंपनी को बेचने का फैसला वापस ले सकती है.

सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी

पवनहंस (Pawan Hans) में जहां केंद्र सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी है, वहीं ONGC का 49 फीसदी हिस्सा है. लंबे समय से घाटे में चल रही इस कंपनी को बेचने के फैसले के बाद साल 2016 से अब तक इसकी बिक्री की चार कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन हर बार कोई न कोई पेच अटक रहा है. गौरतलब है कि आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने अक्टूबर 2016 में पवन हंस के रणनीतिक विनिवेश (Pawan Hans Divestment) को मंजूरी दी थी.

बंद करने का भी हो सकता है फैसला

बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, पवन हंस की बिक्री के लिए बना अंतर-मंत्रालयी समूह अब इस सेल ऑफर को वापस ले सकता है. एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से इसमें कहा गया है कि अब निकट भविष्य में सरकार के इस कंपनी को बेचने की संभावना भी बेहद कम है. इसके साथ ही नई सार्वजनिक क्षेत्र की उद्यम नीति के अनुसार, केंद्र कंपनी को बंद करने पर भी विचार कर सकता है. सेल ऑफर को बंद करने की प्रक्रिया इसही हफ्ते शुरू हो सकती है.

इस बार यहां अटक गया मामला
रिपोर्ट में बताया गया कि इस बार पवन हंस को खरीदने के लिए सही और कॉम्पटीटिव बोली भी लगी थी, लेकिन खरीदार पर लगे आरोपों के चलते सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा है. दरअसल, अल्मास ग्लोबल ऑपर्च्युनिटी फंड के नेतृत्व वाली Star-9 Mobility ने घाटे में चल रही हेलीकॉप्टर फर्म में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 211 करोड़ रुपये से ज्यादा की बोली लगाई थी.

लेकिन, हाल ही में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की कोलकाता पीठ ने अल्मास ग्लोबल के खिलाफ  पावर कंपनी ईएमसी लिमिटेड के अधिग्रहण पर एक आदेश दिया. इसकी वजह से बिक्री प्रक्रिया की पारदर्शिता पर असर पड़ा और सरकार को बिक्री प्रक्रिया को रोकना पड़ा और स्टार9 मोबिलिटी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया.

सरकार को मिली थीं तीन बोलियां
सरकार ने पवन हंस में अपनी 51 फीसदी की हिस्सेदारी बेचने के लिए 199.92 करोड़ रुपये का बेस प्राइस तय किया था. इसके लिए तीन कंपनियों ने बोली लगाई थी और स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप ने 211.14 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी. बाकी दो बोलियां 181.05 करोड़ रुपये और 153.15 करोड़ रुपये की मिली थी. ऐसे में सबसे ज्यादा बोली लगाकर इस बोली प्रक्रिया को स्टार-9 ने जीता था, लेकिन चौथी बार भी ये बिक्री पूरी नहीं हो सकी है.

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