16 अप्रैल को वरुथिनी एकादशी , इस व्रत को करने से शारीरिक पीड़ा से मिलती है मुक्ति

वरुथिनी एकादशी का व्रत 16 अप्रैल 2023 को रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु के वराह रुप की उपासना का विधान है. पौराणिक मान्यता के अनुसार वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से ही राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी. वरुथिनी एकादशी पर वराह रूप में विष्णु जी की पूजा करने से अन्नदान और कन्यादान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है. पुराणों के अनुसार एकादशी का व्रत सौभाग्य में वृद्धि करता है और सौभाग्य का आधार संयम है. अगर व्रती में संयम नहीं है तो उसके तप, त्याग,  भक्ति-पूजा आदि सब व्यर्थ हो जाते हैं. उसी प्रकार वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत कथा का श्रवण किए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

वरुथिनी एकादशी 2023 मुहूर्त

वैशाख कृष्ण एकादशी तिथि शुरू – 15 अप्रैल 2023, सुबह 08.05

वैशाख कृष्ण एकादशी तिथि समाप्त – 16 अप्रैल 2023, सुबह 06.14

वरुथिनी एकादशी व्रत पारण समय – सुबह 05.54 – सुबह 10.45 (17 अप्रैल 2023)

वरुथिनी एकादशी कथा

श्रीकृष्ण ने वरुथिनी एकादशी का महत्व बताया हुए युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई. पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे. राजा बहुत ही दानवीर और धर्मात्मा थे. एक बार राजा जंगल के पास तपस्या कर रहे थे. तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा. तप में लीन राजा का पैर चबाते हुए भालू उन्हें घसीटकर जंगल में ले गया. घायल राजा ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की.

एकादशी व्रत से पाई शारीरिक पीड़ा से मुक्ति और मोक्ष

घबराए हुए राजा मांधाता ने करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा और उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला. भालू के हमले से राजा मंधाता अपंग हो गए थे, शारीरिक पीड़ा से वह बहुत दुखी और कष्ट झेलने को मजबूर थे. इस पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान विष्णु से उपाय पूछा. श्रीहरि बोले ये तुम्हारे पिछले जन्म का पाप है जो इस जन्म में भुगतना पड़ रहा है. भगवान विष्णु ने राजा से वैशाख की वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजन करने को कहा.

राजा मांधाता ने विष्णु जी के बताए अनुसार वरुथिनी एकादशी पर श्रीहरि के वराह रूप की पूजा , जिसके प्रताप से वह शारीरिक पीड़ा से मुक्त हो गया और पुन: शरीर स्वस्थ हो गया. सच्चे मन से एकादशी व्रत और पूजन करने पर राजा मांधाता को मोक्ष की प्राप्ति हुई.

 

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