योगिनी एकादशी 14 जून को , जानें व्रत के प्रभाव से माली हेम का कोढ़ हो गया ठीक

 निर्जला एकादशी और देवशयनी एकादशी के बीच पड़ने वाली एकादशी योगिनी एकादशी कही जाती है। यह एकादशी आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में और अंग्रेजी कैलेंडर के जून, जुलाई महीने में पड़ती है। योगिनी एकादशी इस साल 14 जून को पड़ रही है। आइये जानते हैं योगिनी एकादशी का महत्व, पूजा विधि आदि…

योगिनी एकादशी की डेट और मुहूर्त
आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 13 जून सुबह 9.28 बजे से हो रही है और यह तिथि 14 जून को सुबह 8.28 बजे संपन्न हो रही है। इसलिए उदयातिथि में योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून बुधवार के दिन रखा जाएगा। इस व्रत का पारण 15 जून, गुरुवार सुबह 05:22 से 08:10 बजे के बीच में होगा।

योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी की महिमा निराली है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं और उसके जीवन में सुख समृद्धि आती है। साथ ही मृत्यु के बाद व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि एक योगिनी एकादशी व्रत का पुण्य फल अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। खास बात यह है कि एकादशी का पारण हरिवासर के बाद द्वादशी की तिथि के भीतर कर लेना चाहिए, वर्ना यह भी पाप कर्म समझा जाता है।

योगिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि (Yogini Ekadashi Vrat Ki Puja Vidhi)
1. योगिनी एकादशी के दिन 14 जून को सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर और एकादशी व्रत का संकल्प लें।
2. आषाढ़ कृष्ण एकादशी के दिन घर के मंदिर में पूजा कर रहे हैं तो इससे पहले एक वेदी बनाएं, उसे गंगाजल से शुद्ध करें।
3. इसके बाद वेदी पर सप्त धान्य जैसे उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें।
3. इसके बाद 5 या 11 की संख्या में आम या अशोक के पत्ते में से जो भी सुलभ हो कलश में रखकर वेदी पर रख दें।
4. अब वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
5. इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, मौसमी फल और तुलसी की दाल चढ़ाएं।
6. फिर अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाएं और भगवान विष्णु की आरती करें।
7. एकादशी के दिन शाम को भगवान विष्णु की पूजा और आरती करने के बाद ही फलाहार ग्रहण करें ।
8. रात को सोने के बजाय भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
9. इसके बाद द्वादशी तिथि की सुबह पूजा पाठ करने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसे दान-दक्षिणा से संतुष्ट कर विदा करें।
10. ब्राह्मण को विदा करने के बाद अपना खुद का भोजन बनाकर और खाकर व्रत पूरा करें।
आषाढ़ योगिनी एकादशी व्रत की कथा
 
 
एक प्राचीन कथा के अनुसार अलकापुरी में कुबेर नाम के राजा राज्य करते थे। कुबेर भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। प्रतिदिन उनकी पूजा के लिए राजा कुबेर का माली हेम फूल लेकर आता था। माली की पत्नी विशालाक्षी बहुत सुंदर थी, एक दिन वह फूल लेकर आया। लेकिन पत्नी के फेर में उसने फूलों को पूजा स्थल पर नहीं पहुंचाया। इधर राजा फूल की प्रतीक्षा करता रहा। जब माली नहीं आया, तो राजा ने सैनिकों को उसका पता लगाने के लिए भेजा, सैनिक माली को लेकर राजा के पास पहुंचे।
यहां घटना की जानकारी पर राजा को क्रोध आ गया, उसने हेम को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया और पत्नी वियोग सहने का भी अभिशाप दिया। इसके प्रभाव से हेम भटकने लगा और एक दिन मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने हेम को योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। हेम ने ठीक वैसा ही किया और व्रत के प्रभाव से हेम का कोढ़ दूर हो गया। बाद में मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
 

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